“इज़राइल-ईरान संबंध: अंतिम टकराव की कगार पर खड़ा पश्चिम एशिया”

Edited by: Abhishek Sharma, Director, Abhishek Educational Services

भूमिका:

पश्चिम एशिया के दो सबसे चर्चित राष्ट्र — इज़राइल और ईरान — दशकों से कूटनीतिक, वैचारिक और सैन्य तनाव में उलझे हुए हैं। हाल के वर्षों में यह तनाव न केवल क्षेत्रीय राजनीति को प्रभावित कर रहा है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी चुनौती दे रहा है। परमाणु कार्यक्रमों, गुप्त हमलों, प्रॉक्सी युद्धों और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के कारण यह संबंध आज टकराव के एक नए मुकाम पर आ गया है।


इतिहास की पृष्ठभूमि:

1979 की ईरानी इस्लामी क्रांति के पहले, ईरान और इज़राइल के बीच रणनीतिक और व्यापारिक रिश्ते थे।
• क्रांति के बाद, ईरान ने इज़राइल को “ज़ायोनिस्ट शासन” कहकर उसे अवैध और इस्लाम के विरोधी राष्ट्र के रूप में घोषित किया।
• वहीं, इज़राइल ने ईरान के कट्टर इस्लामी शासन और उसके “इज़राइल-विरोधी” दृष्टिकोण को लेकर लगातार चिंताएं जताई हैं।


प्रमुख विवाद:

1️⃣ परमाणु कार्यक्रम:

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को इज़राइल अपनी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है।
• इज़राइल का आरोप है कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु बम बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है, जबकि ईरान इसे शांतिपूर्ण उपयोग का दावा करता है।
• 2015 के ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) से अमेरिका के बाहर निकलने (2018) और ईरान द्वारा यूरेनियम संवर्धन बढ़ाने के बाद, इज़राइल की चिंताएं और बढ़ गई हैं।

2️⃣ प्रॉक्सी वॉर (परोक्ष युद्ध):

• ईरान लेबनान के हेज़बोल्लाह और फिलिस्तीनी गुट हम्मास को हथियार, प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता देता है।
• इज़राइल इन संगठनों को आतंकवादी मानता है और इन पर बार-बार हवाई हमले करता है, विशेषकर सीरिया और गाज़ा पट्टी में।
• इसके प्रतिउत्तर में ईरान समर्थित गुट रॉकेट हमले करते हैं।


हाल की घटनाएं (2023-2024):

• अप्रैल 2024 में ईरान ने पहली बार सीधे इज़राइल पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए, जिसके जवाब में इज़राइल ने ईरान के इस्फ़हान सैन्य अड्डे पर हमला किया।
• इससे दोनों देशों के बीच सीधे युद्ध का खतरा बढ़ गया, जिसे अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने कूटनीतिक रूप से संभालने की कोशिश की।
• वहीं, गाज़ा युद्ध (अक्टूबर 2023) ने फिर से इज़राइल-ईरान टकराव को हवा दी।


आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव:

• यदि पूर्ण युद्ध हुआ तो न केवल पश्चिम एशिया, बल्कि तेल आपूर्ति श्रृंखला, वैश्विक ऊर्जा बाज़ार, और भारतीय उपमहाद्वीप पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
• भारत जैसे देश, जो ईरान से ऊर्जा खरीदते हैं और इज़राइल से रक्षा उपकरण लेते हैं, उनके लिए यह संतुलन कठिन होगा।


भारत की भूमिका और नीति:

• भारत की नीति “रणनीतिक संतुलन” पर आधारित है।
• भारत ईरान के साथ चाबहार पोर्ट और मध्य एशियाई संपर्क परियोजनाओं में लगा हुआ है।
• वहीं, इज़राइल भारत का प्रमुख रक्षा और कृषि तकनीक साझेदार है।
• भारत का प्रयास है कि वह दोनों देशों से मजबूत संबंध बनाए रखे, साथ ही क्षेत्र में शांति की अपील करता रहे।


निष्कर्ष:

इज़राइल और ईरान का टकराव किसी एक देश की दुश्मनी नहीं, बल्कि पश्चिम एशिया की अस्थिरता, वैचारिक कट्टरता और रणनीतिक वर्चस्व की लड़ाई का प्रतीक है।
यह आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, और क्षेत्रीय शक्तियां आगे आकर संवाद और समाधान के मंच तैयार करें, अन्यथा यह टकराव वैश्विक अशांति का कारण बन सकता है।

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